रक्तमोक्षण पंचकर्म क्या है और फायदे | Raktamokshana in Hindi

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रक्तमोक्षण (Raktamokshana), अर्थात शरीर का अशुद्ध रक्त नजदीक के रास्ते से शरीर के बाहर निकालना। इसे शास्त्रोक्त भाषा में रक्तस्रुति या Blood – Letting भी कहा जाता है। आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा में वमन, विरेचन, नस्य, बस्ती और रक्तमोक्षण इन पांच प्रमुख चिकत्सा का समावेश होता हैं। आज हम इस लेख में पंचकर्म के अंतर्गत आनेवाली अद्भुत चिकित्सा रक्तमोक्षण की जानकारी विस्तार में देने जा रहे हैं।

आम जिंदगी में हम कई बार किसी की जिंदगी बचाने के लिए रक्तदान (Blood Donation) करते है, पर अच्छा स्वास्थ्य पाने व बीमारी से मुक्ति पाने के लिए आयुर्वेद में रक्तमोक्षण यह महान चिकित्सा की जाती है। आयुर्वेद में रक्तमोक्षण चिकित्सा आचार्य सुश्रुत की अनमोल देन है। रक्तमोक्षण को आयुर्वेद में अर्ध चिकित्सा कहा गया है। रक्तमोक्षण से आपकी आधी बीमारी चली जाती है और बाकी आधी बीमारी दवाइयों की मदत से, वो भी बहोत कम लगती है।

रक्तमोक्षण क्या हैं, इसके प्रकार क्या हैं और यह कैसे किया जाता है इसकी विस्तार में जानकारी नीचे दी गयी हैं :

रक्तमोक्षण पंचकर्म क्या है ? (Raktamokshana in Hindi)

शरीर के अशुद्ध रक्त को शरीर के बाहर निकालने के लिए की गयी क्रिया को आयुर्वेद मे रकतमोक्षण कहा गया हैं। यह आयुर्वेदिक पंचकर्म का एक हिस्सा हैं।

रक्तमोक्षण के कितने प्रकार हैं ?

रक्तमोक्षण 2 तरह से किया जाता है।
1. सार्वदैहिक : यह डिस्पोजेबल सिरिंज नीडल की मदत से किया जाता है। एक बार मे करीब 50 से 80 ml तक खून निकाला जाता है।
2. स्थानिक : यह जलौका (Leech) की मदत से किया जाता है।

रक्तमोक्षण किसे करना चाहिए ?

स्वस्थ व्यक्ति ने स्वास्थ्य रक्षा के लिए हर साल शरद ऋतु (सप्टेंबर / अक्टूबर) में प्रशिक्षित आयुर्वेदिक वैद्य द्वारा रक्तमोक्षण कराना चाहिए। बच्चों से लेकर वृद्धों तक कोई भी, रक्तपित्तजन्य बीमारियों में तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए रक्तमोक्षण कर सकता है।

आयुर्वेद सिद्धांत के अनुसार वर्षा ऋतु की नमी के वजह से शरीर मे अम्लता (acidity) बढ़ती है, जो कि सप्टेंबर/ अक्टूबर की धूप से कुपित होकर अम्लपित्त, शीतपित्त (urticaria), chicken pox, नागिन (Herpies), boils आदि कई तरह के त्वचा विकार शरीर मे निर्माण करती है।

बीमार व्यक्ति व्याधि के अवस्था के अनुरूप कभी भी रक्तमोक्षण करा सकता है। दूषित रक्तपित्तजन्य बीमारियों में रक्तमोक्षण किया जाता है।

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रक्तमोक्षण कैसे और कब करे ?

रक्तमोक्षण बीमारी की अवस्थानुसार किया जाता है। इसके लिए कोई विशेष तैयारी की जरूरत नही होती है। सिर्फ जिसका रक्तमोक्षण करना हो वह खाली पेट ना रहे, उसने नाश्ता या खाना खाया हुआ हो। मरीज खाने में कुछ मीठा भी खा सकता है। पेट भरा रहने से पूरे शरीर मे रक्तसंचालन अच्छे से होकर दोष बाहर निकलने में आसानी होती है। साथ ही हाइपोग्लाइसीमिया होने का खतरा भी कम होता है।

रक्तमोक्षण किन बीमारियों में करना चाहिये?

रक्तमोक्षण प्रायः उन बीमारियों में किया जाता है, जिनमें वात, पित्त या कफ के साथ रक्त की दृष्टि हो। खासकर रक्तपित्तजन्य विकारों में तथा जिन लक्षणों में जलन/ ठनक (Thrombing or burning pain) हो, उनमें रक्तमोक्षण से काफी लाभ देखने मे मिलता है।

वातरक्त (Gout), शीतपित्त (Urticaria), सिरदर्द (Migraine), पिण्डलियों में ऐंठन (Cramps), उच्च रक्तदाब ( High BP), दाद (Eczema), नागिन (Herpies zoster), त्वचारोग (Skin disease), आंखों की बीमारियां, पित्तज भ्रम (Vertigo), अम्लपित्त (Acidity), Appendix, मुँहासे (Acne), ध्वजभंग (Sexual impotency), पुराना बुखार ( Pyrexia of unknown origin), Liver diseases, Trigeminal neuralgia, Heel pain, सन्धिवात आदि बीमारियों में रक्तमोक्षण कराने से काफी फायदा होता है।

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रक्तमोक्षण किस जगह से कर सकते है ?

रक्तमोक्षण इन जगहों की शिराओं (Veins) से कर सकते है जैसे की मस्तिष्क(vein near forehead), गर्दन ( Jugular vein), दोनों हाथ पांव, घुटने के नजदीक की शिरा से, पुरुषों में लिंग (Penis) की नजदीक की शिरा से भी रक्तमोक्षण कर सकते है।

रक्तमोक्षण कराते वक्त क्या सावधानी रखें?

रक्तमोक्षण कराते वक्त डॉक्टर यह ध्यान रखते है, की मरीज का हीमोग्लोबिन ठीक हो, वह दुर्बल, डरा हुआ, भूका न हो। अगर वह स्त्री है, तो वह प्रेग्नेंट ना हो।

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रक्तदान करते वक्त क्या सावधानी बरते ?

कई बार हम देखते हैं, की हमने जिसे रक्तदान किया उसे भी हमारे तरह के व्याधि होते है। इसीलिए आयुर्वेद में कहा गया है, जब हमें किसीको रक्तदान करना हो तो शुरुआत का 40 – 50 ml दूषित रक्त को जाने दे और फिर रक्तदान के लिए खून जमा करे। ताकि जिसे खून की जरूरत हो , उसके शरीर मे शुद्ध रक्त जाए।

रक्तमोक्षण के क्या फायदे हैं ? (Raktamokshana benefits in Hindi)

1. शरीर की सर्विसिंग: कई बार यह पूछा जाता है, की रक्तमोक्षण बार बार क्यों करे ? जिस तरह हम गाड़ी की सर्विसिंग कराते वक्त यह ध्यान में रखते है, की गाड़ी का ऑइल हर 6 महीने में बदला जाए, उसी तरह हमे यह ध्यान रखना है कि शरीररूपी इंजन का रक्तरूपी ऑइल साल में 1 या 2 बार जरूर बदलना चाहिए ताकि हम रक्तपित्तजन्य , त्वचागत बीमारियों से बच सके व अच्छा स्वास्थ्य पा सके।
2. रक्त शुद्धि: जिस तरह हम कुँए से अगर पानी निकालते नही है, तो एक limit के बाहर उसमें पानी बढ़ता नही है और वो ही अगर हम बीच बीच मे पानी निकालते रहे तो कुँए में नया और ताजा पानी आते रहता है। उसी तरह खराब, दूषित खून अगर शरीर के बाहर निकल जाने पर, शरीर मे नया , ताजा खून बनने लगता है।
3. त्वचा रोग से बचाव: रक्तमोक्षण करने से आपको त्वचा रोग नहीं होते हैं। चेहरे पर निखार रहता है और त्वचा सुंदर कोमल बनी रहती हैं। 
4. रोग से बचाव: रक्तवह स्त्रोतस से जुड़े रोग जैसे की हाई ब्लड प्रेशर, चर्म रोग, दाद, सिरदर्द, एसिडिटी, जोड़ों में दर्द आदि रोगों से राहत मिलती हैं।
5. Non Healing Wound: ऐसे जख्म जो ठीक नहीं हो रहे हैं उनमे जलौका लगाकर रक्तमोक्षण करने से जख्म ठीक होते हैं। Bed sore और Diabetic ulcer में इससे लाभ मिलता हैं। नसों में जमा हुआ रक्त भी इससे पतला हो जाता हैं।
6. रोग प्रतिरोधक शक्ति: रक्तमोक्षण से शरीर मे सफेद रक्त कण की निमिति सुचारु रूप से होती है जिस कारण शरीर को रोग प्रतिरोधक शक्ति मे इजाफा होता हैं।

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जलौका से कैसे ईलाज किया जाता हैं ? (Leech therapy in Hindi)

जलौकावचरण (Leech Therapy) की प्रक्रिया नीचे बतायी गयी हैं ।

  1. सबसे पहले जहां जलौका (Leech) लगाना है उस जगह को Betadine और Spirit से साफ किया जाता हैं।
  2. उसके बाद जहा जलौका लगाना है वहाँ एक निर्जन्तुक सुई या Needle चुभा दी जाती है जिससे थोड़ा खून निकाल जाता हैं।
  3. अब उस जगह पर जलौका को लगाया जाता हैं। जलौका तुरंत वहाँ खून चूसना शुरू कर देती हैं।
  4. जलौका के Saliva मे एक chemical होता है जिससे वह जगह बधिर (Anesthetic) हो जाती है और व्यक्ति को दर्द नहीं होता हैं।
  5. पर्याप्त मात्रा मे खून पीने पर जलौका को निकाल दिया जाता है। अगर जलौका आराम से न निकले तो उसके मुंह पर थोड़ी हल्दी डाल दी जाती है जिससे वह खून पिन बंद कर उस जगह को छोड़ देती हैं।
  6. अंत मे उस जगह को betadine से साफ कर dressing किया जाता हैं।
  7. जलौका के मुंह पर हल्दी डालने से जलौका पूरा खराब खून की उलटी कर देती है और जलौका को साफ कर दुबारा container मे रख दिया जाता हैं।
  8. Leech Therapy का उपयोग कर ठीक न होनेवाले जख्म, Diabetic foot, गैन्ग्रीन जैसे जख्म या Bed sore भी ठीक किए जा सकते हैं।
  9. जलौका के Saliva मे एक तत्व होता है जिससे खून भी पतला होता है और बंद नसे भी खोली जा सकती हैं।

तो यह थी आयुर्वेद की अर्धचिकित्सा माने जानेवाली रक्तमोक्षण की जानकारी। शरद ऋतु अर्थात सप्टेंबर/ अक्टूबर में बीमारी के अलावा स्वस्थ व्यक्ति भी अगर रक्तमोक्षण करे तो उसे अच्छा स्वास्थ्य, चमकदार त्वचा और कांति मिलकर वह लंबे समय तक खुशहाल जिंदगी गुजार सकता है। रक्तमोक्षण यह आयुर्वेद से इंसान को मिला हुआ एक अद्भुत, कम खर्चे में होनेवाला, स्वदेशी इलाज है, जिसका लाभ हम सबने उठाना चाहिए।

अगर आपको रक्तमोक्षण पंचकर्म चिकित्सा क्या है और इसके फायदे यह जानकारी उपयोगी लगती है तो कृपया इसे शेयर जरूर करे।  

References:

  1. Medicinal leech therapy—an overall perspective: https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5741396/
  2. Leech Therapy – Anticoagulation Protocols: https://medicine.uiowa.edu/iowaprotocols/leech-therapy-anticoagulation-protocols
  3. Leech Therapy for Patients With Surgically Unsalvageable Venous Obstruction After Revascularized Free Tissue Transfer: https://jamanetwork.com/journals/jamaotolaryngology/fullarticle/482996

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