नस्य, यह पंचकर्म के अंतर्गत की जानेवाली एक अद्भुत चिकित्सा पद्धति है। इस चिकित्सा पद्धति में नाक के द्वारा औषधि या औषधि सिद्ध स्नेह जैसे की तेल, घी या क्वाथ शरीर में पहुचाया जाता है। सभी पंचकर्म पध्दति में से नस्य यह सबसे सरल परन्तु बेहद असरदार उपचार हैं।
आयुर्वेद में कहा गया है " नासा ही शिरसो द्वारम। " अर्थात नाक यह हमारे मस्तिष्क का प्रवेश मार्ग (gate) है। इसलियें शिरोव्याधि अर्थात मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियों में नाक द्वारा औषधि द्रव्य की बूंद डाली जाती है। नस्य का दूसरा अर्थ नासिका के लिए जो हितकर है, यह भी होता है। यह निश्चित लाभदायक चिकित्सा पद्धति है।
आज के इस लेख में हम नस्य पंचकर्म क्या है, इसे कैसे किया जाता है और इसके लाभ क्या है इसकी पूरी जानकारी देने जा रहे हैं। नस्य पंचकर्म की संपूर्ण जानकारी नीचे दी गयी हैं :
गर्दन के ऊपर की बीमारियों के लिए नस्य विशेष उपयुक्त होता है। नस्य कर्म को आयुर्वेद में शिरोविरेचन भी कहा जाता है। माइग्रेन, सिरदर्द, आँखे कमजोर होना, याददाश्त कम होना, बालों की समस्या, मिर्गी, अनिद्रा जैसे कई रोगों में नस्य पंचकर्म उपचार से जल्द आराम मिलता हैं।
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ध्यान रहे, कोई भी चिकित्सा शुरू करने से पूर्व अपने आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह अवश्य ले। डॉक्टर की निगरानी में चिकित्सा ले या अपने प्रकृति व व्याधिनुसार सही दवाई का चुनाव व लेने का तरीका जरूर जान ले।तो यह थी नस्य पंचकर्म की जानकारी। आशा करते है, आपको यह जानकारी जरूर समझ आयी होगी और आप नस्य चिकित्सा का फायदा जरूर उठाएंगे।
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आयुर्वेद में कहा गया है " नासा ही शिरसो द्वारम। " अर्थात नाक यह हमारे मस्तिष्क का प्रवेश मार्ग (gate) है। इसलियें शिरोव्याधि अर्थात मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियों में नाक द्वारा औषधि द्रव्य की बूंद डाली जाती है। नस्य का दूसरा अर्थ नासिका के लिए जो हितकर है, यह भी होता है। यह निश्चित लाभदायक चिकित्सा पद्धति है।
आज के इस लेख में हम नस्य पंचकर्म क्या है, इसे कैसे किया जाता है और इसके लाभ क्या है इसकी पूरी जानकारी देने जा रहे हैं। नस्य पंचकर्म की संपूर्ण जानकारी नीचे दी गयी हैं :
नस्य पंचकर्म की विधि और लाभ Nasya Karma in Hindi
नस्य पंचकर्म क्या हैं ?
" उर्ध्वजत्रुविकारेषु विशेषान्नस्यामिष्यते। " अर्थात, उर्ध्वजत्रुगत विकारों व दोषों को दूर करने, शिरः शून्यता (head problems) हटाने, ग्रीवा (neck), स्कंध (shoulder) व वक्ष (chest) का बल बढ़ाने, दृष्टि (eye sight) तेज करने के लिए औषधि सिद्ध, तेल, घृत या क्वाथ को नासिका के माध्यम से शरीर के भीतर पहुँचाया जाता है, उस प्रक्रिया को नस्य कहा जाता है।गर्दन के ऊपर की बीमारियों के लिए नस्य विशेष उपयुक्त होता है। नस्य कर्म को आयुर्वेद में शिरोविरेचन भी कहा जाता है। माइग्रेन, सिरदर्द, आँखे कमजोर होना, याददाश्त कम होना, बालों की समस्या, मिर्गी, अनिद्रा जैसे कई रोगों में नस्य पंचकर्म उपचार से जल्द आराम मिलता हैं।
नस्य चिकित्सा किन बीमारियों में विशेषतः की जाती है ?
- पुरानी सर्दी - Rhinitis
- अर्धशीश - Migraine
- साइनस - Sinusitis
- अपस्मार ( मिर्गी / फिट ) - Epilepsy
- उन्माद ( पागलपन का दौरा ) आदि मानसिक विकार - Mental disorder
- बालों की समस्याएं - Hair loss
- मस्तिष्क विकार - Headache
- याददाश्त कमजोर होना - Memory
- मस्तिष्क में रक्तस्त्राव होना - CVA : Cerebro Vascular Accidents आदि बीमारियों में यह काफी कारगर चिकित्सा पद्धति है।
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नस्य के प्रकार
आयुर्वेद में नस्य के मुख्यतः शमन नस्य व शोधन नस्य, यह दो प्रकार किए गए हैं। इसके अलावा प्रधमन नस्य, मर्ष नस्य व प्रतिमर्ष नस्य आदि कई प्रकार भी बताए गए हैं।नस्य के लिए प्रयोग में लिए जानेवाले द्रव्य
- तेल :- तेल को वातशामक कहा गया है। बीमारी के आधार पर अलग-अलग तरह का तेल उपयोग में लाया जाता है। जैसे, पंचेन्द्रिय वर्धन तेल, अनुतेल, वचादी तेल, महामाश तेल, सहचर तेल आदि।
- घी :- पित्तज या पित्त से अनुबंध बीमारियों में घृत अर्थात शुद्ध घी, शिरबला घृत, केशर घृत आदि का प्रयोग किया जाता है।
- अन्य : किसी विशिष्ट बीमारी में वनस्पति का चूर्ण या स्वरस निकालकर नाक में डाला जाता है जैसे दूर्वा स्वरस, वचा चूर्ण आदि।
नस्य की विधि Nasya procedure in Hindi
नस्य पंचकर्म कैसे किया जाता है इसकी जानकारी नीचे दी गयी हैं :- नस्य कर्म स्वस्थ व्यक्ति तथा बीमार व्यक्ति दोनों में किया जाता है। बीमार व्यक्ति में नस्य कर्म करने के पहले वैद्य रोगी की प्रकृति व रोग के अनुसार औषध योग का निर्धारण करते हैं।
- इसके पश्चात व्यक्ति का स्नेहन व स्वेदन किया जाता है। अर्थात सिर, कान, गर्दन आदि पर तेल की मसाज कर भाप दी जाती है, जिससे चिपके हुए दोष पतले होकर निकालने में आसानी होती है।
- रोगी को कान में थोड़ा रुई / cotton डालना चाहिए या फिर कान को कपडे / scarf से ढकना चाहिए ताकि ठंडी हवा कान में न जाए। ठंडी हवा से वात प्रकोप हो सकता हैं।
- तत्पश्चात नस्य कर्म करने के लिए व्यक्ति के सिर को पीछे झुकाकर लेटाया या बैठाया जाता है।
- फिर चिकित्सक द्वारा दोनों नासिका छिद्रों में औषधि सिद्ध तेल या घृत योग्य मात्रा में डाला जाता है।
- अगर औषधि चूर्ण के रुप मे हो तो इसे नली ( tube ) के माध्यम से नाक में पहुँचाया जाता है।
- व्यक्ति को निर्देश दिए जाते है कि वह औषधि नाक से खिंचे व गले मे आयी हुई औषधि मुँह के द्वारा बाहर निकाल दे या गर्म पानी से कुल्ला कर ले।
- नस्य करने के बाद रोगी को 15 मिनिट तक सिर की बाजु निचे की ओर रखकर लिटाना चाहिए।
- नस्य पंचकर्म करने के बाद आपने ठंडी हवा, ठंडा पानी या ठंडी जगह से परहेज करना चाहिए।
- नस्य करने के 1 घंटे के बाद आप कान से रुई निकाल सकते हैं।
- कुछ डॉक्टर नस्य का मतलब केवल Nasal dropper की सहायता से नाक में दवा की drop डालना समझ लेते है पर अगर सही तरीके से आप नस्य पंचकर्म नहीं करते है तो आपको इसका पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा।
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नस्य पंचकर्म के फायदे Nasya benefits in Hindi
- उपयोगी कर्म : आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि नाक में कुछ डालना यह जरूर तकलीफदेह होता होगा। लेकिन बीमारी के तकलीफ के आगे यह तकलीफ काफी कम होती है और इसका लाभ भी अधिक होता है।
- कफज रोग : कफज बीमारियों में नस्य कर्म से काफी फायदा होता है। श्वास मार्ग व नासिका में संचित कफ को नस्य से बाहर निकाला जा सकता है। नस्य कर्म से श्वास नली में संचित कफ पतला होकर बाहर निकलता है।
- ऊर्ध्वजत्रुगत रोग : नस्य कर्म द्वारा उर्ध्वजत्रुगत अंग अर्थात सिर, नाक, कान, आंख, गला आदि का कार्य सुचारू रूप से होने लगता है।
- इंद्रिय : नस्य कर्म हमारे इन्द्रियों को सुदृढ़ता व बल प्रदान करता है। नियमित रूप से नस्य करने से मुखमंडल पर विशिष्ट आभा आती है। व्यक्ति की आवाज स्थिर व स्निग्ध हो जाती है।
- वात रोग : कई वातव्याधि में यह कर्म बृहन तथा शमन का कार्य करता है।
- एलोपैथी से बेहतर : जिन व्यक्तियों को साइनस या बार बार सर्दी की वजह से बार बार नाक बंद होने की समस्या होती है, उन्हें आजकल आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में Otrivin जैसे nasel drops दिए जाते है। जिनसे शुरुआत में तो काफी राहत मिलती है पर धीरे धीरे उनकी आदत हो जाती है। एक वक्त ऐसा आता है, की वे असर करना कम करते है, जिससे उनका dose बढ़ाना पड़ता है व उसके दुष्परिणाम होते सो अलग। ऐसे व्यक्तियों के लिए नस्य चिकित्सा काफी असरदायक होती है। हालांकि एलोपैथी के ड्राप जैसे तुरन्त फायदा नही होगा पर नियमित रूप से नस्य लेने से उनकी ये समस्या धीरे धीरे बन्द हो जाऐगी।
- स्वास्थ्य रक्षा : स्वस्थ व्यक्ति अगर नियमित तौर पर नस्य करता है तो, उसके त्रिदोषों का शोधन होकर शमन होता है। वे साम्यावस्था में रहते है। जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़कर नए व्याधियों का होना कम होता है।
- रोग नाशक : स्वस्थ व्यक्ति अगर हर रोज सुबह 8 से 9 बजे तक या शाम को 5 से 6 के बीच में थोड़ा सिर पीछे करके लेटे हुए अपने ही हाथ से 2 से 3 ड्रॉप्स पंचेंद्रिय वर्धन तेल या अनु तेल के डालने लगे, तो उसकी सर्दी, नाक बंद होना, सिर भारी होना, याददाश्त कमजोर होना, बालों की समस्याएं, नींद ना आना आदि कई तकलीफों से कुछ दिनों में जरूर राहत मिलेगी।
- नाक से खून आना : कई बार, खासकर शरद ऋतु में बच्चों को नाक में से खून बहने की शिकायत होती है। उनमें भी सौम्य विरेचन व नियमित नस्य द्वारा यह परेशानी जरूर दूर होगी।
- मानसिक विकार : आजकल मानसिक विकार काफी बढ़ रहे है। इस मे भी नींद न आने की समस्या काफी तेज हो रही है। ऐसे में हम नियमित नस्य ले व साथ मे शिरोधारा का एक कोर्स कर ले तो आप अपने आप को काफी relax महसूस करोगे, mind में तरह तरह के खयाल नही आएंगे, साथ में नींद भी अच्छी आएगी।
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ध्यान रहे, कोई भी चिकित्सा शुरू करने से पूर्व अपने आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह अवश्य ले। डॉक्टर की निगरानी में चिकित्सा ले या अपने प्रकृति व व्याधिनुसार सही दवाई का चुनाव व लेने का तरीका जरूर जान ले।तो यह थी नस्य पंचकर्म की जानकारी। आशा करते है, आपको यह जानकारी जरूर समझ आयी होगी और आप नस्य चिकित्सा का फायदा जरूर उठाएंगे।
अगर आपको यह नस्य पंचकर्म की विधि और लाभ से जुडी जानकारी उपयोगी लगती है तो कृपया इसे शेयर जरूर करे।
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