आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा क्या है इसकी संक्षिप्त जानकारी हम पहले ही प्रकाशित कर चुके हैं। आज इस लेख में हम आपको आयुर्वेदिक पंचकर्म में से एक बेहद महत्वपूर्ण पंचकर्म वमन की जानकारी देने जा रहे हैं। वमन को अंग्रेजी भाषा में Therapeutic Vomiting या Emesis कह सकते है पर इसका मतलब इससे बेहद अलग हैं। समान्यतः Vomiting या उलटी होना यह किसी बीमारी का लक्षण होता हैं पर आयुर्वेद की इस पंचकर्म पद्धति में रोगी का रोग ठीक करने के लिए और उसका स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए आयुर्वेदिक औषधि देकर उलटी करायी जाती है ताकि रोगी के प्रकुपित दोष बाहर निकल जाए और शारीरिक शुद्धि हो जाए।
आयुर्वेद यह दूसरे वैद्यक शास्त्र की तरह लोगों की स्वास्थ्य समस्याएं छुड़ाने वाला शास्त्र है। हर पैथी की अपनी एक मर्यादा होती है। हर पैथी रोगी को बीमारी से मुक्त कराकर उसे स्वस्थ बनाती है, लेकिन आयुर्वेद की खास विशेषता यह है कि आयुर्वेद में बीमारी का इलाज तो होता ही है पर उससे ज्यादा जोर इस बात पर दिया जाता है कि जाता है कि बीमारी ही ना हो या हो तो उसका असर कम हो। इसके लिए आयुर्वेद में एक विशेष चिकित्सा पद्धति है जिसे पंचकर्म कहा जाता है। बीमारी का इलाज कोई एक पैथी से करने के बजाय जिस पैथी से आसानी से एवम कम दुष्परिणाम के साथ हो उससे करना चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि आयुर्वेद में परिणाम जल्दी नहीं मिलता है या फिर वह सिर्फ chronic बीमारियों के लिए है, पर यह गलत है। अगर सही तरीके से व सही समय पर चिकित्सा की जाए तो आयुर्वेद में सही इलाज होता है और तुरंत परिणाम मिलते हैं। पंचकर्म यह एक ऐसी चिकित्सा है जो कई इमरजेंसी मामलों को भी हल करने की क्षमता रखती है, बशर्ते वह सही तरीके से व सही व्यक्ति द्वारा की जाए।
स्वास्थ्य की सही व्याख्या आयुर्वेद में ही बताई गई है :
" समदोषः समागनिश्च समधातु मल क्रियाः
प्रसन्नाआत्मेन्द्रीय मनः स्वस्थ इत्यभिधीयते।। "
शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही आत्मा, पंच ज्ञानेंद्रिय, पंच कर्मेंद्रिय और मन इन सब की प्रसन्नता यानी उत्तम स्वास्थ्य की परिभाषा। आयुर्वेद यह सिर्फ रोग की ही नहीं बल्कि रोगी की भी चिकित्सा करता है।आयुर्वेद में रोग निदान मतलब सिर्फ रोगों को नाम देना नहीं होता है, बल्कि उसकी दोष दुश्य समूर्छना अर्थात जड़ से पैथोलॉजी अच्छे से समझना यानी सही निदान होता है।
वमन पंचकर्म क्या हैं ? Vamana Panchkarma Therapy in Hindi
वमन व आयर्वेदआयुर्वेद में कफज बीमारियों की खास चिकित्सा वमन बताई गई है। वमन को अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो यह शरीर के दुष्ट दोषों को निसर्गतः बाहर निकालने की एक योजना कह सकते हैं। अगर हम खुद निसर्गतः दोषों को बाहर नहीं निकाल सकते, तो इसके लिए हमें चिकित्सक की सहायता लेना चाहिए। वमन स्वस्थ व्यक्ति भी कर सकता है, जैसे वसंत ऋतु में वमन पंचकर्म किया जाता है और किसी विशेष बीमारी में भी चिकित्सक वमन क्रिया कराते हैं।
आयुर्वेद में शोधन चिकित्सा यह व्याधिस्थान मतलब जिस स्थान का व्याधि हो उसके अनुसार की जाती है, जैसे अगर आमशगत व्याधि हो तो वमन किया जाता है। पित्ताशयगत व्याधि हो तो विरेचन किया जाता है एवं पक्वाशयगत व्याधि हो तो बस्ती कर्म किया जाता है। वमन यह आमाशय शुद्धि की चिकित्सा है। व्याधि का नाम कुछ भी हो लेकिन अगर उसकी दोष दृष्टि अमाशय से जुड़ी हो तो चिकित्सक वमन चिकित्सा को प्राधान्य देते हैं।
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वमन पंचकर्म किस रोग में किया जा सकता हैं ?
आयुर्वेद में कई ऐसे व्याधि ( बीमारियां ) है, जो वमन चिकित्सा से दूर किए जाते हैं। कफ दोष में या कफ के साथ वात और पित्त का अनुबंध होने पर और कफज स्थान में व्याधि होने पर वमन कर्म किया जाता है।जैसे :-
- नवज्वर ( बुखार का शुरुआती समय ),
- टॉन्सिल्स,
- अतिसार ( loose motion ),
- अधोग रक्तपित्त ( शरीर के निचले भाग से रक्तस्त्राव ),
- क्षयरोग ( TB ),
- कुष्ठरोग,
- ग्रन्थि अपची ( गांठ होना ),
- श्लीपद,
- उन्माद ( मानसिक व्याधि ),
- कास ( कफ )
- श्वास (Asthma),
- ह्रुल्लास ( जी मचलाना ),
- स्तन्यदोष,
- त्वचागत बीमारिया जैसे सोरियासिस, पिम्पल्स की समस्या, एक्जिमा, डेंड्रफ,
- ऊर्ध्व जतृगत रोग जैसे प्रतिश्याय ( cold ), कर्णस्राव ( कान से पानी आना ), नाक की हड्डी बढ़ना, मुँह में बदबू, भूक न लगना, मायग्रेन,
- पैरालिसिस की शुरुआती अवस्था,
- आमवात (Rhumatoid Arthritis)
अगर हम वमनसाध्य बीमारी में वमन लेते हैं, तो काफी दोष शरीर के बाहर निकल जाते हैं, जिस वजह से कम से कम पॉवर वाली दवाई लेकर भी पेशेंट ठीक हो जाता है। जिससे दवाई के साइड इफेक्ट्स होने की आशंका नहीं रहती है या कम हो जाती है। जो कम दवाई लगती है वह भी बचे हुए दोषों का पाचन करने व बीमारी ठीक करने के लिए आवश्यक होती है।
आजकल बहुत सी बीमारियां खासकर त्वचारोग, एलर्जीक बीमारियां होने की वजह यह है, कि व्यक्ति स्वस्थ अवस्था मे या बीमारी में अगर मचलाहट, उल्टी जैसा लगना आदि लक्षण हो, तो उन्हें दवाई लेकर दबा देता है। जिससे आयुर्वेदानुसार दोष दब जाते हैं और वह शाखागत हो जाते हैं। कई बार निसर्ग खुद ऐसी स्थिति तैयार करता है, जैसे मचलाहट होना आदि जिससे की उल्टी द्वारा दोष खुद ही शरीर के बाहर आ जाए, पर व्यक्ति इस अवस्था को समझ नहीं पाता है या डर जाता है जिस कारण दवाई लेकर वह उसे दबा देता है। इससे वह व्याधि तो कम हो जाता है पर उसे अन्य बीमारियां होने लगती है।
अगर दुष्ट दोष शाखा में अर्थात रक्त में चले जाए तो उसे urticaria, खुजली, जलन जैसी कई स्किन की बीमारियां होने लगेगी और मध्यम मार्ग में चले जाए तो वह दुष्ट दोष हृदय, किडनी आदि को खराब करेंगे। इसलिए अगर व्यक्ति को कभी भी उल्टी जैसा लगे या मचलाहट हो तो उसे कभी भी दबाना नहीं चाहिए।
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वमन पंचकर्म कब किया जाता हैं ?
वमन दो तरह से कर सकते हैं- स्वस्थ व्यक्तिने हर साल वसंत ऋतु में वमन कर्म जरूर करना चाहिए।
- वमनसाध्य बीमारी अर्थात व्याधि अवस्था मे भी हम वमन कर सकते है।
उपरोक्त बीमारियों के अलावा कई बीमारियां भी वमन से ठीक हो सकती है, बशर्ते रोगी वमन कर्म करने योग्य हो और उसमें वह सारे लक्षण मौजूद हो जिसके आधार पर वमन कर्म किया जाता है।
वमन पंचकर्म कैसे किया जाता हैं ?
वमन कर्म विधि
वमन कर्म करने के पूर्व वैद्य द्वारा रोगी का परीक्षण किया जाता है जैसे वह वमन के योग्य है या नहीं, उसका कोष्ठ कैसा है, अग्नि कैसा है आदि।
- प्रथम क्रिया : सबसे पहले रोगी को प्रकृति के हिसाब से 3, 5 या 7 दिन आभ्यंतर स्नेहपान ( अर्थात विशिष्ट मात्रा में घी या तेल का सेवन ) कराया जाता है। इस दौरान रोगी का वात प्रकोप न हो इसका ध्यान रखा जाता है। उसे शारीरिक श्रम कम करने की सलाह दी जाती है। स्नेहपान का पाचन होने पर व भूक लगने पर हल्का आहार लेने व गर्म पानी पीने को कहा जाता है।
- द्वितीय क्रिया : रोगी का स्नेहपान होने के पश्चात सम्यक स्नेहन के लक्षणों का परिक्षण वैद्य द्वारा किया जाता है। इसके पश्चात वमन देने के पहले 2 दिन उसे बाहय स्नेहन व स्वेदन किया जाता है। वमन के पहले दिन उसे कफकर आहार जैसे दही, उडद की खिचड़ी, मिठाई, केला आदि खाने को कहा जाता है।
- तृतीय क्रिया : इस दिन मुख्य वमनकर्म किया जाता है। रोगी को पूर्ण नींद लेने के बाद मलमूत्रादि कर्म के पश्चात जल्दी सुबह चिकित्सालय में बुलाया जाता है। फिर डॉक्टर उसे मदनफल जैसे वमन औषधि व दूध, गन्ने का रस, यष्टिमधु काढ़ा पिलाकर वमन कराते हैं। उल्टियां बन्द होने पर व सम्यक वमन के लक्षण दिखने के पश्चात व्यक्ति को घर भेजा जाता है।
- चतुर्थ क्रिया : इसे संसर्जन कर्म कहा जाता है। इसमें जब रोगी को भूक लगती है, तब हल्के आहार से शुरू कर अग्नि बलानुसार आहार बढ़ाया जाता है। शुरआत मे सफेद लाही, फिर मूंग के दाल का पानी घी डालकर, तत्पश्चात मूंग की खिचड़ी , बादमें ज्वारी या बाजरे की रोटी, फिर सब्जी रोटी, दाल चावल इस तरह आहार को धीरे धीरे बढ़ाया जाता है। इस तरह इस अवस्था का पालन बहोत ध्यानपूर्वक करना होता है। अगर इसमे गड़बड़ी हो तो वमन का सही परिणाम नही मिलता है। वैद्य सलाहनुसार संसर्जन क्रम का पालन किया जाता है।
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वमन के फायदे Vamana Therapy Benefits in Hindi
- वमन पंचकर्म करने के बाद शरीर में कफज रोग का नाश होता हैं और अस्थमा, एलर्जी, त्वचा रोग, मोटापा, अपचन, कब्ज, पेट फूलना, आलस्य आदि रोगों मिलती हैं।
- वमन पंचकर्म से आवाज भी मधुर होती हैं और पाचन शक्ति बढ़ती हैं।
- शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं।
- कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर की समस्या को नियंत्रित किया जा सकता हैं।
- मुंहासे, सोरियासिस, रूखी निस्तेज त्वचा जैसे समस्या में वमन कर्म से लाभ मिलता हैं।
- वमन से ना सिर्फ आपकी बीमारी दूर होगी बल्कि आपको उत्तम स्वास्थ्य का वरदान भी मिलेगा।
- व्यक्ति जिस तरह अपने LIC की पॉलिसी हर साल renew कराता है, उसी तरह स्वस्थ व्यक्ति ने हर वर्ष वमनादी पंचकर्म जरूर करना चाहिए।
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बहुत ज्ञानवर्धक
जवाब देंहटाएंThanks
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