Food Intolerance का कारण, लक्षण और उपचार

अकसर हम लोग देखते है की कुछ विशेष वस्तु खाने के बाद हमें अपचन हो जाता हैं, पेट फुला फुला से लगता है और खट्टी डकारे भी आती हैं। हम इसे एसिडिटी मानकर कोई सिरप या एसिडिटी की दवा ले लेते है और बात को भूल जाते हैं। हमें इस बता पर गौर करना चाहिए यह की यह लक्षण Food Intolerance के भी हो सकते हैं।

 

Food Intolerance (फ़ूड इनटॉलेरेंस) या खाने से असहिष्णुता यानि किसी खास तरह के भोजन को सहन नहीं कर पाना। फ़ूड इनटॉलेरेंस और फ़ूड एलर्जी में फर्क होता हैं। फूड एलर्जी की तरह फूड इनटोलरेंस की वजह से शरीर की रोग प्रतिरक्षण प्रणाली सक्रिय नहीं होती है। यह फ़ूड पॉइजनिंग से भी अलग होता है। फुड पॉइजनिंग खाने के लिए अनउपयुक्त आहार का सेवन करने पर उसमें मौजूद विषैले पदार्थों की वजह से होता है। इस तरह आहार खाने पर किसी को भी फूड पॉइजनिंग हो सकती है।

 

 

Food Intolerance क्या होता है ?

 

हम जो भी कुछ भी खाते हैं उसे हमारा शरीर विभिन्न पाचक रसों या एंजाइम्स की मदद से पचाता है। फूड इनटोलरेंस की समस्या तब होती है जब व्यक्ति का शरीर कुछ विशेष खाद्य पदार्थों को पचाने में असमर्थ होता है यानी उस पदार्थ को पचाने के लिए शरीर पर्याप्त मात्रा में एंजाइम्स नहीं बना पाता है। कई लोगों को गाय का दूध नहीं पचता है। गाय के दूध में लैक्टोस होता है। इसे पचाने के लिए शरीर में लेक्टेज एंजाइम की आवश्यकता होती है। यदि शरीर में पर्याप्त मात्रा में लेक्टज ना हो तो लैक्टोज को पचाय नहीं जा सकता है। ऐसे में व्यक्ति गाय के दूध का सेवन करें तो शरीर में फूड इनटोलरेंस के लक्षण नजर आते हैं।

 

फूड इनटोलरेंस अलकोहोल डीहायड्रोजीनेज नामक एंजाइम की कमी होने पर भी हो सकता है। जिन लोगों में इस एंजाइम की कमी होती है वे थोड़ी मात्रा में भी शराब का सेवन करने पर प्रभावित हो सकते हैं। कई लोगों को रासायनिक परिरक्षको (preservatives) वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करने पर प्रतिकूल प्रतिक्रिया सामने आने लगती है। बाजार में मिलने वाले पदार्थों में सल्फाइड्स,  सेलिसीलेट्स, मोनोसोडियम ग्लूटामैट यानी अजीनोमोटो साल्ट, कैफ़ीन, एसपराटेम और टारट्राजिन जैसे रसायन फूड इनटोलरेंस के कारण हो सकते हैं।

 

शरीर में एंजाइम विशेष की कमी होने पर जो हम खाते हैं वह पच नहीं पाता जिससे शरीर में जहरीले बायप्रोडक्ट्स बनने लगते हैं। इनके अलावा हिस्टामिन भी बनता है जिससे शरीर में सूजन नजर आने लगती है। यह लक्षण एलर्जी से मिलते जुलते होते हैं लेकिन यह एलर्जी से नहीं बल्कि फूड इनटोलरेंस की वजह से होता है, इसलिए इसे नकली एलर्जिक रिएक्शन भी कहा जाता है।

 

शिशुओं में जन्म के समय लेक्टज का स्तर अधिक होता है इसलिए लेक्टोज इनटोलरेंस की समस्या 2 वर्ष की आयु के बाद ही शुरू होती है जब शरीर में लेक्टज का स्तर और उत्पादन दोनों ही कम होने लगता है। कई बार यह भी होता है कि लोगों में इसके लक्षण कई सालों बाद दिखाई देने शुरू होते हैं। अस्थाई रूप से यदि शरीर में लेक्टज की कमी होती है तो इससे गैस्ट्रोएन्टराइटिस (उल्टी और जुलाब) हो सकता है। खासकर बच्चों में यह अधिक देखने को मिलता है।

 

Food Intolerance के लक्षण क्या हैं ?

ज्यादातर फूड इनटोलरेंस अधिक नुकसानदेय तो नहीं होता लेकिन इससे प्रभावित होने पर अप्रिय लक्षणों का सामना करना पड़ता है जैसे पेट फुलना, गैस की समस्या, मितली आना, सूजन, पेट दर्द, दस्त होना आदि। यह लक्षण कुछ घंटों से कुछ दिनों तक दिखाई दे सकते हैं। इसकी गंभीरता दो चीजों पर निर्भर करती है, खाद्य पदार्थ कितनी मात्रा में लिया गया है और शरीर में एंजाइम का निर्माण किस मात्रा में हो रहा है।

 

Food Intolerance का निदान कैसे करे ?

आपको किस चीज से फूड एंटरेंस है या नहीं यह पता लगाने का सबसे अच्छा तरीका है कि कुछ दिनों के लिए उस चीज को अपने आहार से निकाल दे। कुछ दिनों बाद लक्षण कम हो गया या बिल्कुल खत्म होने के बाद फिर से उस चीज को आहार में शामिल करके देखें। यदि लक्षण फिर से दिखाई देने लगे तो यह इनटोलरेंस हो सकता है। लेक्टोज इनटोलरेंस का पता लगाने के लिए चिकित्सक की सलाह पर लेक्टोज इनटोलरेंस टेस्ट, हाइड्रोजन ब्रेथ टेस्ट, स्टूल एसिडिटी टेस्ट आदि जांच कराई जा सकती है।

 

Food Intolerance का इलाज कैसे करे ?

फूड इनटोलरेंस का सबसे आसान उपाय है उस पदार्थ से पूरी तरह से परहेज कर लेना। छोटे बच्चों को या शिशु में लेक्टोज इनटोलरेंस की समस्या होने पर उन्हें गाय के दूध की जगह सोया मिल्क या हाइपो एलर्जीक मिल का फार्मूला दिया जा सकता है। वयस्क नुकसानदायक खाद्य पदार्थ की छोटी मात्रा सहन कर सकते हैं। वे लेक्टोज इनटोलरेंस के लिए लेक्टेज ड्रॉप या कैप्सूल भी ले सकते हैं। इस बात पर ध्यान देना बहुत जरूरी है कि यदि आपको कोई चीज लेना बंद कर रहे हैं तो उसकी जगह उपयुक्त विकल्प आहार अपने आहार में जरूर शामिल करें ताकि शरीर में पोषक तत्वों की कमी ना हो। इसके लिए डाइटिशियन की सलाह भी ली जा सकती है। इसके निदान के लिए और किसी भी चीज को बंद करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श जरूर ले।

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